साल 1947 में भारत को आज़ादी मिली और देश का विभाजन भी हुआ। साथ ही बंगाल का भी विभाजन हुआ। पश्चिम बंगाल का हिस्सा भारत में रह गया और पूर्वी बंगाल का हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और बाद में पूर्वी पाकिस्तान कहलाया।
पूर्वी हिमालय और बंगाल की खाड़ी के बीच बसे पश्चिम बंगाल में खूबसूरत घाटियों से लेकर चाय के बागानों की ताजगी है तो कहीं सुंदरवन की विविधता। धार्मिक और सांस्कृतिक तौर पर जितना ही ये राज्य समृद्ध है उतना ही राजनीतिक तौर पर ये राज्य जागरूक है। साथ ही बंगाल का राजनीति के एक खास उग्र रूप से वास्ता रहा है। क्रांति और जुनून राज्य के राजनीतिक मानस में शामिल है। खुदीराम बोस, नेताजी बोस… स्वतंत्रता आंदोलन इसके उदाहरणों से भरा पड़ा है। लेकिन बंगाल में राजनीतिक हिंसा का भी पुराना इतिहास रहा है। जिसकी शुरूआत ब्रितानी वायसराय लॉर्ड कर्जन के बंगाल के विभाजन के फैसले के विरोध में 1905 में हुई थी। उसके बाद आज़ादी मिलने तक बंगाल में हिंसक घटनाओं का सिलसिला चलता रहा था। आज़ादी के बाद, 1960 के दशक में नक्सलबाड़ी आंदोलन से बंगाल की राजनीति में एक हिंसक मोड़ आया। नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता चुना, क्योंकि चुनावों और लोकतंत्र पर उनका भरोसा नहीं था। उस समय राज्य में सत्तासीन कांग्रेस ने, खास कर शहरी इलाकों में, हिंसा को कायम रखने का काम किया और वामपंथी उन दिनों हिंसा झेल रहे थे।